Befikri ho chali

Posted on 9th Mar 2020 by sangeeta

बेफिक्र हो चली थी ज्योंही तुम्हारा काँधा मिला था 

 

शाम ढलते ढलते तुम्हारे मेरे रास्ते बदल गये थे 

 

समझा लिया था दिल को उज्ज्वल भविष्य की आशा में 

 

सच कहती हूँ प्रियवर लौटते हुए हजार टुकड़े हुए थे 

 

जीवन में एक पल को अँधेरा होने लगा था 

 

पर सुकुन था एक दिन में महीनों के लम्हे जी लिए थे 

 

थामकर हाथ तुम्हारा छोड़ने का मन तो नही था 

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