MANANE KI KHWAHISH HO YA NA HO

Posted on 19th Feb 2020 by sangeeta

र लगता है तुम्हें बताने में वो जो हमारे बीच तासीर-इ-इज़हार था,

न जाने तुम्हें उसका एहसास हो या न हो।

 

डर लगता है तुम्हें समझाने में वो जो हसीं लम्हे से थे कुछ गिले-शिकवे,

न जाने तुम्हें सुनने की चाहत हो या न हो।

 

डर लगता है उस तस्वीर के स्याही में तुम्हारा इश्क़ पढ़ने में,

न जाने फिर वो मुराद हो या न हो।

 

डर लगता है तुम्हारी उन बातों पे, उन वादो पे रुठने में,

न जाने फिर तुम्हें मनाने की ख़्वाहिश हो या न हो।

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