MERE DESH KI AANKHEN

Posted on 25th Feb 2020 by sangeeta

झुकी कमर सीधी की

माथे से पसीना पोछा

डलिया हाथ से छोड़ी

और उड़ी धूल के बादल के

बीच में से झलमलाते

जाड़ों की अमावस में से

मैले चांद-चेहरे सुकचाते

में टंकी थकी पलकें

उठाईं

और कितने काल-सागरों के पार तैर आईं

मेरे देश की आंखें...

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