MERE DESH KO JAGRAT BANAO

Posted on 20th Feb 2020 by sangeeta

“मन जहां डर से परे है

और सिर जहां ऊंचा है;

ज्ञान जहां मुक्*त है;

और जहां दुनिया को

संकीर्ण घरेलू दीवारों से

छोटे छोटे टुकड़ों में बांटा नहीं गया है;

जहां शब्*द सच की गहराइयों से निकलते हैं;

जहां थकी हुई प्रयासरत बांहें

त्रुटि हीनता की तलाश में हैं;

जहां कारण की स्*पष्*ट धारा है

जो सुनसान रेतीले मृत आदत के

वीराने में अपना रास्*ता खो नहीं चुकी है;

जहां मन हमेशा व्*यापक होते विचार और सक्रियता में

तुम्*हारे जरिए आगे चलता है

और आजादी के स्*वर्ग में पहुंच जाता है

ओ पिता

मेरे देश को जागृत बनाओ”

Other poetry