MUJHE NA BASANT BHATA HAI

Posted on 9th Mar 2020 by sangeeta

मुझे न बसंत भाता है, 

 

न ही बहारे अच्छी लगती है। 

 

सब कुछ इन्द्रधनुषी होकर भी, 

 

मन के पतझङ की पीङा मुझे डसती है। 

 

आग लगी है जज्बातो की अंदर, 

 

नीरसता बर्फ सी जमी फिर भी नहीं पिघलती है। 

 

सब मसाले है पास मेरे खुशियां पकाने के, 

 

जिन्दगी फिर भी फीकी चाय लगती है 

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