zindagi jina bhl gaya

Posted on 20th Feb 2020 by sangeeta

कब सपनों के लिए,

सपनों का घर छोड़ दिया पता ही नहीं चला।

 

रूह आज भी बचपन में अटकी,

बस शरीर जवान हो गया।

 

गांव से चला था,

कब शहर आ गया पता ही नहीं चला।

 

पैदल दौड़ने वाला बच्चा कब,

बाइक, कार चलाने लगा हूं पता ही नहीं चला।

 

जिंदगी की हर सांस जीने वाला,

कब जिंदगी जीना भूल गया, पता ही नहीं चला।

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