AAG KI BHIKH

Posted on 15th Feb 2020 by sangeeta

धुँधली हुईं दिशाएँ, छाने लगा कुहासा,

कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँ-सा।

कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है;

मुँह को छिपा तिमिर में क्यों तेज रो रहा है?

दाता, पुकार मेरी, संदीप्ति को जिला दे,

बुझती हुई शिखा को संजीवनी पिला दे।

प्यारे स्वदेश के हित अंगार माँगता हूँ।

चढ़ती जवानियों का श्रृंगार मांगता हूँ।

Other poetry