AANKHON MEIN BHARE VIHAAG

Posted on 27th Feb 2020 by sangeeta

बीती विभावरी जाग री!

अम्बर पनघट में डुबो रही

तारा घट ऊषा नागरी।

 

 खग कुल-कुल सा बोल रहा

किसलय का अंचल डोल रहा

लो यह लतिका भी भर ला‌ई

मधु मुकुल नवल रस गागरी।

 

अधरों में राग अमंद पिये

अलकों में मलयज बंद किये

तू अब तक सो‌ई है आली

आँखों में भरे विहाग री।

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