bachpan bit gaya

Posted on 18th Feb 2020 by sangeeta

बचपन बीत गया लड़कपन में, जवानी बीत रही घर बनाने में,

जंगल सी हो गई है जिंदगी, हर कोई दौड़ रहा आंधी के गुबार में।

 हर रोज नई भोर होती, पर नहीं बदलता जिंदगी का ताना बाना,

सब कर रहे हैं अपनी मनमानी, लेकिन जी नहीं रहे अपनी जिंदगानी।

कोई पास बुलाए तो डर लगता है, कैसी हो गई है यह दुनिया बेईमानी,

सफर चल रहा है जिंदा हूं कि पता नहीं, रोज लड़ रहा हूं चंद सांसे जीने के लिए।

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