BOLE SUBHASH JI

Posted on 21st Feb 2020 by sangeeta

दमकी उनकी रक्तिम काया!

आजानु-बाहु ऊँची करके,

वे बोले, “रक्त मुझे देना।

इसके बदले भारत की

आज़ादी तुम मुझसे लेना।”

हो गई सभा में उथल-पुथल,

सीने में दिल न समाते थे।

स्वर इनकलाब के नारों के

कोसों तक छाए जाते थे।

“हम देंगे-देंगे खून”

शब्द बस यही सुनाई देते थे।

रण में जाने को युवक खड़े

तैयार दिखाई देते थे।

बोले सुभाष, “इस तरह नहीं,

बातों से मतलब सरता है।

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