EK ITIHAAS BAN JATE HAI

Posted on 21st Feb 2020 by sangeeta

मोम की मानिंद, कैसे पिघल-पिघल जाते हैं,

ढलती रेत से हाथों से फिसल जाते हैं, लम्हे ।

किताब के सूखे फूल-सी धुंधली याद बन जाते हैं,

तब सफर में हमसफर सा साथ दे जाते हैं लम्हें। > जब छलक कर नम आंखों का जल बन जाते हैं,

वो लम्हे, नासूरी का लम्हा-लम्हा दर्द दे जाते हैं। > कभी शब्दों का, कभी लफ्जों का खेल, खेल जाते हैं,

कभी कलम के फूल, बन अंगार ढह जाते हैं, लम्हे।

मीठी-मीठी बातों में चुप के सौ पहरे बन जाते हैं,

फिर रूह को छूकर अनकहे ही गुजर जाते हैं, लम्हें।

जब ठहरे पानी में पत्थरों से, हलचल कर जाते हैं,

वो लम्हे, आईने को तकते, एक इतिहास बन जाते हैं।

Other poetry