Kease pighal jaten hai

Posted on 27th Feb 2020 by sangeeta

मोम की मानिंद, कैसे पिघल-पिघल जाते हैं, 

ढलती रेत से हाथों से फिसल जाते हैं, लम्हे । 

किताब के सूखे फूल-सी धुंधली याद बन जाते हैं,

तब सफर में हमसफर सा साथ दे जाते हैं लम्हें।  

 जब छलक कर नम आंखों का जल बन जाते हैं, 

वो लम्हे, नासूरी का लम्हा-लम्हा दर्द दे जाते हैं। 

कभी शब्दों का, कभी लफ्जों का खेल, खेल जाते हैं,

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