prand ke saman hai

Posted on 25th Feb 2020 by sangeeta

घोर अंधकार हो,

चल रही बयार हो,

आज द्वार-द्वार पर यह दिया बुझे नहीं

यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।

शक्ति का दिया हुआ,

शक्ति को दिया हुआ,

भक्ति से दिया हुआ,

यह स्वतंत्रता-दिया,

रुक रही न नाव हो

ज़ोर का बहाव हो,

आज गंग-धार पर यह दिया बुझे नहीं,

यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है।

Other poetry