sankat apna bal sakha

Posted on 26th Feb 2020 by sangeeta

संकट अपना बाल सखा है, इसको कठ लगाओ

क्या बैठे हो न्यारे-न्यारे मिल कर बोझ उठाओ

भाग्य भरोसा कायरता है

कर्मठ देश कहाँ मरता है?

सोचो तुमने इतने दिन में कितनी बार हुँकारा

 

जीना हो तो मरना सीखो गूँज उठे यह नारा

केरल से करगिल घाटी तक

सारा देश हमारा

Other poetry