tumhe pata na chala

Posted on 6th Feb 2020 by sangeeta

यूँ तो शराफत और सादगी लुभाती थी मुझको,

तेरी शरारतों पर कब फिसल गया पता न चला!

खुली जुल्फों से आती थी जो तुम्हारी भीनी-भीनी खुशबु,

जाने कब खामोश जंगल सी हुई मुझे पता न चला!

अधरों पर चमकती थी जो सूरज की लालिमा,

वो मदहोश लैब बेसुध क्यों हुए मुझे पता न चला!

वजह चाहे जो हो तेरे इस घुट-घुट के जीने की,

मेरे जीने की वजह अब तुम हो शायद तुम्हें पता न चला!

Other poetry