PARIWAR HUM DO PAR HI SIMAT GAYA

Posted on 22nd Feb 2020 by sangeeta

जिन काले घने बालों पर इतराते थे हम कब उनको रंगना शुरू कर दिया पता ही नहीं चला|

 

दर दर भटकते थे नौकरी की खातिर कब रिटायर होने का समय आ गया पता ही नहीं चला|

 

बच्चों के लिए कमाने-बचाने में इतने मशगूल हुए हम, कब बच्चे हमसे हुए दूर पता ही नहीं चला|

 

भरे-पूरे परिवार में सीना चौड़ा रखते थे हम, कब परिवार हम दो पर ही सिमट गया पता ही नहीं चला|

Other poetry